Dear All
Janata Party is organising an event on 1st of Dec at Mavalankar Hall, where Dr. Swamy is a speaker himself.
Janata Party,
Delhi Pradesh Adhiveshan
Udghatan aivam Pramukh Vakta - Dr Subramanian Swamy
Venue
Malvankar Hall,
Rafi Marg
New Delhi
Time: 2pm
Sir can you please tell the time? also is it for anyone and everyone? can any anonymous person come?also kindly mention the complete details(address).
ReplyDeleteOh sorry I just read the time. kindly mention the complete address and is it open for all or just your party members?
ReplyDeletesir,any entire charges..
ReplyDeleteस्त्री रूप की पुरुष रूप द्वारा उपासना में -
ReplyDelete1. सोमरस पान के सम्पूर्ण चक्र में भोगों की कामना करना (पुण्य)- इस स्थिति में सकाम उपासना करना अनुचित है इससे अग्नि तत्व द्वारा सोम तत्व की पवित्रता नष्ट होती है ।
धर्म की परिभाषा के अनुसार स्त्री रूप सत्य की प्रबलता है । स्त्री रूप का गर्भाशय केवल दान के द्वारा जीवन की उत्पत्ति के लिए है, सकाम उपासना (निम्न श्रेणी) में पुरुष रूप द्वारा जानबूझकर उस ओर जाकर अग्नि तत्व द्वारा गर्भाशय की पवित्रता को नष्ट करना धर्म के विरुद्ध है ।
2. भोगों की कामना (पुण्य) न होने की स्थिति। समान काम कर्मेन्द्रिय (निम्न श्रेणी-त्यागने योग्य) । स्त्री रूप द्वारा पुरुष रूप की सकाम उपासना अनुचित है इससे अग्नि तत्व द्वारा गर्भाशय की पवित्रता नष्ट हो सकती है।
धर्म की परिभाषा के अनुसार स्त्री रूप सत्य की प्रबलता है । स्त्री रूप का गर्भाशय केवल दान के द्वारा जीवन की उत्पत्ति के लिए है, सकाम उपासना (निम्न श्रेणी) में पुरुष रूप द्वारा जानबूझकर उस ओर जाकर अग्नि तत्व द्वारा गर्भाशय की पवित्रता को नष्ट करना धर्म के विरुद्ध है ।
3. सोमरस पान - पुरुष रूप के लिए यह निष्काम उपासना आवश्यक है, सोमरस पान से पुरुष रूप द्वारा उत्पन्न अग्नि तत्व शान्त व शीतल होता है, अग्नि व सोम तत्व की क्रिया से सोम तत्व की पवित्रता नष्ट होती है, सोमरस रूपी भोजन को नष्ट करना अनुचित है, सोम व अग्नि तत्व की क्रिया करवाने वाले पुरुष पाप को खाते है । स्त्री रूप को उस पुरुष द्वारा मुखाग्नि नहीं दी जा सकती क्योंकि यह जल पर अग्नि प्रज्वलित करने के समान है ।
सकाम उपासना (भोगों की कामना की स्थिति न होना), पुण्य एवं दान की त्रिगुणी माया का पालन पुरुष रूप को करना चाहिए । स्त्री रूप की उपासना में धर्म हो अर्थात् उपासना उस स्त्री रूप से विवाह करने वाला पुरुष ही करें । स्त्री रूप सत्य की प्रबलता है इसलिए स्त्री रूप द्वारा पुरूष की उपासना करना धर्म के विरुद्ध है । इसलिए स्त्री देवी का
रूप है । किसी भी आत्मा रहित शरीर की अंत्येष्टि कोई भी पुरुष रूप कर सकता है । स्त्री रूप शरीर रूपी तत्व को मुखाग्नि नहीं दे सकती क्योंकि स्त्री रूप के मुख में अग्नि जाने से यह जल पर अग्नि प्रज्वलित करने के समान है, जिससे सोम तत्व की पवित्रता नष्ट हो सकती है । जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है । मोक्ष के लिए तप, भक्ति एवं दान आवश्यक है । आत्मा पवित्रता के आधार पर एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है । शरीर पवित्रता के आधार पर एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो सकता है । भगवान श्रीराम, शिव एवं शक्ति की उपासना करते है एवं शिव रूप हनुमानजी,
श्रीराम की भक्ति करते है । मैं अपनी उपासना नहीं करवाता । प्रकृति द्वारा उत्पादित एवं प्राप्त (शाक आधारित भोजन, औषधि ...) एवं स्त्री रूप जीवों में जीवन की उत्पत्ति के पश्चात् निर्मित विशिष्ट उत्पाद (दूध, शहद...) जिनमें ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जीवन के न होने पुष्टि होती हो, उनका केवल मुख (भोजन की कर्मेन्द्री) द्वारा उपभोग उचित है । शेष ज्ञान के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन करें ।
स्त्री रूप की पुरुष रूप द्वारा उपासना में -
ReplyDelete1. सोमरस पान का सम्पूर्ण चक्र होने स्थिति (पुण्य)- इस स्थिति में सकाम उपासना करना अनुचित है इससे अग्नि तत्व द्वारा सोम तत्व की पवित्रता नष्ट होती है ।
धर्म की परिभाषा के अनुसार स्त्री रूप सत्य की प्रबलता है । स्त्री रूप का गर्भाशय केवल दान के द्वारा जीवन की उत्पत्ति के लिए है, सकाम उपासना (निम्न श्रेणी) में पुरुष रूप द्वारा जानबूझकर उस ओर जाकर अग्नि तत्व द्वारा गर्भाशय की पवित्रता को नष्ट करना धर्म के विरुद्ध है ।
2. सोमरस पान का सम्पूर्ण चक्र न होने स्थिति। समान काम कर्मेन्द्रिय (निम्न श्रेणी-त्यागने योग्य) । स्त्री रूप द्वारा पुरुष रूप की सकाम उपासना अनुचित है इससे अग्नि तत्व द्वारा गर्भाशय की पवित्रता नष्ट हो सकती है।
धर्म की परिभाषा के अनुसार स्त्री रूप सत्य की प्रबलता है । स्त्री रूप का गर्भाशय केवल दान के द्वारा जीवन की उत्पत्ति के लिए है, सकाम उपासना (निम्न श्रेणी) में पुरुष रूप द्वारा जानबूझकर उस ओर जाकर अग्नि तत्व द्वारा गर्भाशय की पवित्रता को नष्ट करना धर्म के विरुद्ध है ।
3. सोमरस पान - पुरुष रूप के लिए यह निष्काम उपासना आवश्यक है, सोमरस पान से पुरुष रूप द्वारा उत्पन्न अग्नि तत्व शान्त व शीतल होता है, अग्नि व सोम तत्व की क्रिया से सोम तत्व की पवित्रता नष्ट होती है, सोमरस रूपी भोजन को नष्ट करना अनुचित है, सोम व अग्नि तत्व की क्रिया करवाने वाले पुरुष पाप को खाते है । स्त्री रूप को उस पुरुष द्वारा मुखाग्नि नहीं दी जा सकती क्योंकि यह जल पर अग्नि प्रज्वलित करने के समान है ।
सकाम उपासना (सोमरस पान का सम्पूर्ण चक्र न होने स्थिति), सोमरस पान (उपभोग) एवं दान की त्रिगुणी माया का पालन पुरुष रूप को करना चाहिए । स्त्री रूप की उपासना में धर्म हो अर्थात् उपासना उस स्त्री रूप से विवाह करने वाला पुरुष ही करें । स्त्री रूप सत्य की प्रबलता है इसलिए स्त्री रूप द्वारा पुरूष की उपासना करना धर्म के विरुद्ध है । इसलिए स्त्री देवी का रूप है । किसी भी आत्मा रहित शरीर की अंत्येष्टि कोई भी पुरुष रूप कर सकता है । स्त्री रूप शरीर रूपी तत्व को मुखाग्नि नहीं दे सकती क्योंकि स्त्री रूप के मुख में अग्नि जाने से यह जल पर अग्नि प्रज्वलित करने के समान है, जिससे सोम तत्व की पवित्रता नष्ट हो सकती है । जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है । मोक्ष के लिए तप, भक्ति एवं दान आवश्यक है । आत्मा पवित्रता के आधार पर एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है । शरीर पवित्रता के आधार पर एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो सकता है । भगवान श्रीराम, शिव एवं शक्ति की उपासना करते है एवं शिव रूप हनुमानजी, श्रीराम की भक्ति करते है । मैं अपनी उपासना नहीं करवाता । प्रकृति द्वारा उत्पादित एवं प्राप्त (शाक आधारित भोजन, औषधि ...) एवं स्त्री रूप जीवों में जीवन की उत्पत्ति के पश्चात् निर्मित विशिष्ट उत्पाद (दूध, शहद...) जिनमें ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जीवन के न होने पुष्टि होती हो, उनका केवल मुख (भोजन की कर्मेन्द्री) द्वारा उपभोग उचित है । शेष ज्ञान के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन करें ।
nice posting
ReplyDeletethanks for sharing
Great way to explain it. Can't say more than to appreciate what you are penned down. can you show how to grab your rss feed?
ReplyDeletethnx for great info!!
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